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30 days festival - ritual competition -17-Oct-2022 ( 1 ) दशहरा



शीर्षक =दशहरा



माँ, हम दशहरा क्यू मनाते है ? कल हमारे स्कूल की छुट्टी है ,टीचर बता रही थी की कल दशहरा है। अपनी माँ के हाथ से खाना खा रहे रवि ने अचानक ही पूछ लिया जो की अभी 8 साल का है 


"अच्छा, मेरा राजा बाबू को जानना है , की हम दशहरा क्यू मनाते है , मैं बताती हूँ " रवि की माँ सुनैना जी ने उसके सर पर हाथ फेरते हुए कहा और दशहरे के सन्दर्भ में बताती हुयी बोली


बेटा दशहरे को विजयदशमी के नाम से भी जाना जाता है  और अधर्म पर धर्म की जीत का एक जीता जागता उदहारण के रूप में भी ये पर्व मनाया जाता है ।

बेटा इस दिन भगवान श्री राम ने लंका पति  रावण का वध किया था  और अपनी पत्नि सीता जी को उसके चुंगल से आजाद किया था , इसलिय दशहरा मनाया जाता है 


"माँ ये रावण कौन था? आखिर राम जी ने रावण का वध क्यू किया? क्या वो एक बुरा राक्षस था ? " रवि ने पूछा


सुनैना जी थोड़ी देर खामोश रही और फिर बोली " नही बेटा रावण तो एक बहुत ही ज्ञानी पुरुष था । जिसको बहुत सी चीज़ो का ज्ञान था  इसी के साथ साथ वो भगवान शिव का बहुत बड़ा भक्त था  कई साल उनकी तपस्या कर उसे अमर होने का वरदान मिला था ।


लेकिन जैसे ही उसे अपनी शक्तियों और ज्ञान पर अहंकार हो गया , उसे लगने लगा  की इस संसार में उससे बड़ा ज्ञानी कोई दूसरा नही, उसने खुद को अहंकारी बना लिया जिस कारण वो एक ज्ञानी पुरुष से रावण बन बैठा , उसने अपने अहंकार के चलते  तीनो लोको में तबाही मचा दी वो अपने अहंकार में इतना अंधा हो गया था  की उसे कुछ भी दिखाई नही दिया और बनवास काट रहे भगवान राम की अनुपस्थित में साधु का भेष धर  माता सीता को उठा ले गया । और ले जाकर उन्हें अशोक वाटिका में छोड़ दिया और उन दोनों के वियोग का कारण बना ।

उसका अहंकार  उसके सर पर चढ़ गया था , उसे अच्छा और बुरा कुछ भी नज़र नही आ रहा था, यही कारण था  की उसका वध करना जरूरी हो गया था ।


और फिर  अपनी पत्नि सीता की खोज में निकले प्रभु राम ने, बजरंग बलि और अन्य वानर सैना के साथ मिलकर लंका पति रावण का वध कर अपनी पत्नि सीता को उसके चुंगल से आज़ाद किया, और दुनिया को बताया की अधर्म चाहे कितना भी बढ़ जाए लेकिन धर्म से कभी जीत नही सकता , यही कारण है  की हर साल विजय दशमी का पर्व सम्पूर्ण भारत वर्ष में बहुत ही हर्ष और उल्लास के साथ मनाया जाता है, रावण का जलता पुतला और उससे निकलती आग की लपटे चीख चीख कर बयान करती है कि अधिकता  अगर ज्ञान की हो या धन की या फिर ईश्वर से मिली किसी भी चीज की अगर उस मिली चीज और उपाधि पर अहंकार नामी राक्षस ने अपना पंजा गड़ा दिया तो फिर वही  उसकी बर्बादी का सबब बन जाएगा, अब पता चल गया की हम दशहरा क्यू मनाते है  "


पास बैठे रवि ने अपनी माँ की तरफ देखा  और बोला " माँ, फिर तो पापा का भी अंतिम समय नजदीक है , क्यूंकि उनके अंदर भी एक रावण छिपा है  "


"हाय, हाय ये क्या कह रहा है  तू, ये किसने कहा  तुझसे माफ़ी मांग अभी  " सुनैना जी ने घबरा कर कहा 


"माँ, अभी तुमने ही तो बताया की ईश्वर से प्राप्त किसी भी चीज पर अहंकार करना इंसान को उसकी मृत्यु के नजदीक ले जाता है , माँ पापा भी तो अपने पैसे का बहुत घमंड करते है , याद नही आपको  उस दिन बुआ और छोटे चाचा के साथ किस तरह का बर्ताव कर रहे थे  सिर्फ इसलिए क्यूंकि वो हमारे जैसे बढ़े घर में नही रहते है , उनके पास पापा की तरह बड़ी दुकान नही है  जिनमे रोज तरह तरह की मिठाईया बनती है , चाचा और बुआ जी के पास ये सब नही है  इसलिए पापा उन्हें अपने घर भी नही बुलाते है , उनसे मिलने के लिए और हमें भी मिलने नही देते है , क्या ये अहंकार नही है ? क्या पापा को अपने पैसे का घमंड नही है ? क्या वो आज के रावण नही है ? क्या उन्हें इस तरह का बर्ताव रखना चाहिए अपने भाई बहनों से जो उन जैसे अमीर नही है  " रवि ने कहा


सुनैना जी अपने बेटे के मुँह से ये सब सुन सोच में पड़ गई, इससे पहले वो कुछ कहती तब ही उनके पति जो की सब बातें सुन रहे थे , कमरे के अंदर आये  जिन्हे देख रवि डर सा जाता है  और सुनैना जी भी ।


किन्तु उन्होंने आकर रवि को अपनी गोदी में उठाया और बोले " आज मैं जो न जाने कितने सालों से दशहरा मना रहा था , उसके पीछे का कारण जानते बूझते हुए भी सिर्फ और सिर्फ उसे आग लगा कर आ जाता था , किन्तु आज तुमने मेरी आँखे खोल दी, एक अहंकार रुपी रावण तो मेरे खुद के अंदर भी है  जिसे अगर समय रहते  जलाया नही गया तो एक दिन लोगो द्वारा मुझे भी जला कर भुला दिया जाएगा, "


अपने पति के मुख से ये सब सुन सुनैना जी मुस्कुराई और बोली " आइये चलते है  दीदी और भैया को इस बार दशहरा अपने घर बुला कर मनाने की दावत देने, इस बार के दशहरे का आनन्द ही कुछ और होगा क्यूंकि इस बार आप उनसे किसी मजबूरी और अपना रुतबा दिखाने के लिए नही बल्कि एक बढ़े भाई की हैसियत से मिलेंगे "

इसके बाद तीनो ख़ुशी ख़ुशी शाम को घर से कुछ ही दूरी पर बने  अपनी विधवा बहन  जो की बच्चों को पढ़ा कर  और  रिक्शा चला कर अपनी रोज़ी रोटी कमा रहे छोटे भाई  से मिलने उसके घर गए , जिन्हे अपने घर देख वो दोनों ख़ुशी से झूम उठे।



 For 30 days festival / ritual competition 

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10 Comments

Renu

19-Oct-2022 02:41 PM

👍👍🌺

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Palak chopra

18-Oct-2022 11:55 PM

Achha likha hai 💐

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Supriya Pathak

18-Oct-2022 10:09 PM

Achha likha hai 💐

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